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कविता

चंद्रमा

होर्हे लुईस बोर्हेस

अनुवाद - सरिता शर्मा


वह सोना कितना अकेला है
इन रातों का चाँद वह चाँद नहीं
जिसे देखा आदम ने पहली बार
लोगों के रतजगों की
लंबी सदियों ने भर दिया है उसे
पुरातन विलाप से देखो वह तुम्हारा दर्पण है

 


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हिंदी समय में होर्हे लुईस बोर्हेस की रचनाएँ